अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस 3 दिसंबर
हर वर्ष 3 दिसंबर को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना, समाज में उनकी गरिमा बनाए रखना और उन्हें समान अवसर दिलाना है। यह केवल एक दिवस नहीं, बल्कि सोच बदलने का अवसर है — एक ऐसा अवसर जहाँ हम यह समझते हैं कि दिव्यांगता कमजोरी नहीं, बल्कि अलग प्रकार की क्षमता है।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस की शुरुआत कब हुई?
इस दिवस की आधिकारिक शुरुआत वर्ष 1992 में हुई।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर 3 दिसंबर को “International Day of Persons with Disabilities” घोषित किया। इसका मुख्य उद्देश्य था दुनिया भर में दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना और समाज को इस दिशा में सक्रिय बनाना।
इस दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1. वर्ष 1981: अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग वर्ष
संयुक्त राष्ट्र ने साल 1981 को International Year of Disabled Persons घोषित किया था। यह पहला अवसर था जब दिव्यांगता को एक वैश्विक मुद्दा माना गया। इस वर्ष का नारा था:
“Full Participation and Equality”
(पूरी भागीदारी और समानता)
इस नारे ने दुनियाभर की सरकारों को मजबूर किया कि वे दिव्यांगों के लिए नीतियाँ बनाएं और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करें।
2. वर्ष 1983 से 1992: दिव्यांग व्यक्तियों का दशक
1981 के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 1983 से 1992 तक “Decade of Disabled Persons” घोषित किया। इस दशक के दौरान:
- दिव्यांगों की शिक्षा पर रिसर्च शुरू हुई
- Access-friendly infrastructure की अवधारणा विकसित हुई
- Rehabilitation केंद्र विकसित हुए
- मानसिक स्वास्थ्य पर काम बढ़ा
- रोजगार के अधिकारों पर चर्चा शुरू हुई
इस दौरान दुनिया ने महसूस किया कि दिव्यांगता को सामाजिक उपेक्षा से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक समाधान और सामाजिक भागीदारी से दूर किया जा सकता है।
3. वर्ष 1992: अंतरराष्ट्रीय दिवस की घोषणा
इन सभी प्रयासों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में तय किया कि:
हर वर्ष 3 दिसंबर को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक विशेष दिवस मनाया जाएगा।
और तभी से यह परंपरा शुरू हुई।
दिव्यांगता पर रिसर्च और विकास का इतिहास
1950 के बाद रिसर्च में तेज़ी क्यों आई?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में बड़ी संख्या में सैनिक घायल हुए या विकलांग हुए। इसके बाद:
- चिकित्सा विज्ञान ने rehabilitation पर ध्यान देना शुरू किया
- कृत्रिम अंगों पर रिसर्च हुई
- मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिली
- Physiotherapy और Occupational therapy का विकास हुआ
मुख्य शोध क्षेत्र:
🦿 1. कृत्रिम अंग (Artificial Limbs)
आज ऐसे आधुनिक प्रोस्थेटिक पैर और हाथ बनाए जा रहे हैं जो इंसान की नसों से जुड़कर चलते हैं।
🦻 2. श्रवण सहायता उपकरण (Hearing Aids)
पहले बड़े आकार के यंत्र होते थे, आज Invisible Hearing Devices उपलब्ध हैं।
👀 3. दृष्टि-सहायक तकनीक
Braille system, screen readers, voice assistants ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों की दुनिया बदल दी।
🧠 4. मानसिक स्वास्थ्य शोध
Autism, ADHD, Depression जैसी स्थितियों पर गंभीर वैज्ञानिक अध्ययन शुरू हुए।
🦽 5. व्हीलचेयर टेक्नोलॉजी
अब स्मार्ट व्हीलचेयर आ चुकी हैं जो खुद संतुलन बनाए रखती हैं।
🤖 6. Artificial Intelligence और Robotics
AI आधारित सहायक उपकरण आज अंधे और विकलांगों को स्वतंत्र जीवन दे रहे हैं।
भारत में दिव्यांग अधिकारों का विकास
भारत सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनेक योजनाएँ और कानून बनाए हैं, जैसे:
- दिव्यांग अधिकार अधिनियम
- सरकारी नौकरियों में आरक्षण
- नि:शुल्क कृत्रिम अंग योजना
- विशेष शिक्षा संस्थान
- दिव्यांग पेंशन
- स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम
भारत का लक्ष्य है कि दिव्यांग केवल सहारा प्राप्त करने वाले न हों, बल्कि आत्मनिर्भर नागरिक बनें।
दिव्यांगता: समाज की सोच को बदलने की ज़रूरत
दिव्यांग लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या शारीरिक नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता है।
लोग अक्सर:
- दया करते हैं
- अवसर नहीं देते
- निर्णय लेने का अधिकार नहीं सौंपते
- उन्हें बोझ समझते हैं
जबकि सच्चाई यह है कि सही सहयोग और वातावरण मिलने पर दिव्यांग किसी भी क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं।
हम क्या कर सकते हैं?
आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर हम कुछ छोटे लेकिन जरूरी कदम उठा सकते हैं:
✅ उनके अधिकारों के बारे में जानकारी फैलाएं
✅ भेदभाव का विरोध करें
✅ Accessibility को बढ़ावा दें
✅ दिव्यांग बच्चों को समान शिक्षा दें
✅ प्रेरणादायक कहानियां शेयर करें
✅ सरकारी योजनाओं की जानकारी दें
✅ Volunteer बनें
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस हमें याद दिलाता है कि:
क्षमता शरीर में नहीं, सोच में होती है।
दिव्यांग व्यक्ति किसी पर बोझ नहीं, बल्कि समाज की ताकत हैं।
हमें सिर्फ़ उन्हें अवसर देने की ज़रूरत है।
एक समावेशी समाज केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी है।
आइए हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएँ जहाँ कोई भी पीछे न छूटे।